Lekhika Ranchi

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लियो टॉलस्टॉय की रचनाएँ


दो वृद्ध पुरुष


परातःकाल विजय ने यह चचार सुनी तो हांफताहांफता सुमंत के पास आया, बोला-भाई सुमंत, यह सिपाही तुमने किस रीति से बनाए थे?
सुमंत-क्यों? आपको क्या काम है?
विजय-काम की एक ही कही। सिपाहियों की सहायता से तो हम राज्य जीत सकते हैं।
सुमंत-यह बात है! तुमने पहले क्यों नहीं कहा? खलिहान में चलिए, वहां चलकर जितने कहो, उतने सिपाही बना देता हूं, परंतु शर्त यह है कि उन्हें तुरंत ही यहां से बाहर ले जाना, नहीं तो वे गांव का गांव चट कर जायेंगे।
अतएव खलिहान में जाकर उसने कई पलटनें बना दीं और पूछा-बस कि और?
विजय-(परसन्न होकर) बस बहुत है, तुमने बड़ा एहसान किया।
सुमंत-एसान की कौनसी बात है। अब के वर्ष भूसा बहुत हुआ है यदि कभी टोटा पड़ जाय तो फिर आ जाना, फिर सिपाही बना दूंगा।
अब विजय धरती पर पांव नहीं रखता था। सेना लेकर उसने तुरंत युद्ध करने के वास्ते परस्थान कर दिया।
विजय के जाते ही तारा भी आ पहुंचा और सुमंत से बोला-भाई साहब, मैंने सुना है कि तुम सोना बना लेते हो। हायहाय! यदि थोड़ासा सोना मुझे मिल जाए तो मैं सारे संसार का धन खींच लूं।
सुमंत-अच्छा, सोने में यह गुण है! तुमने पहले क्यों नहीं कहा? बतलाओ, कितना सोना बना दूं?
तारा-तीन टोकरे बना दो।
सुमंत ने तीन टोकरे सोना बना दिया।
तारा-आपने बड़ी दया की।
सुमंत-दया की कौन बात है, जंगल में पत्ते बहुत हैं। यदि कमी हो जाय तो फिर आ जाना, जितना सोना मांगोगे, उतना ही बना दूंगा।
सोना लेकर तारा व्यापार करने चल दिया।
विजय ने सेना की सहायता से एक बड़ा भारी राज्य विजय कर लिया। उधर तारा के धन का भी पारावार न रहा। एक दिन दोनों में मुलाकात हुई। बातें होने लगीं।
विजय-भाई तारा, मैंने तो अपना राज्य अलग बना लिया और अब चैन करता हूं, परंतु इन सिपाहियों का पेट कहां से भरुं? रुपये की कमी है, सदैव यही चिंता बनी रही है।
तारा-तो क्या आप समझते हैं कि मुझे चिन्ता नहीं है, मेरे धन की गिनती नहीं, पर उसकी रख वाली करने को सिपाही नहीं मिलते। बड़ी विपत्ति में पड़ा हूं।
विजय-चलिए, सुमंत मूर्ख के पास चलें। मैं तुम्हारे वास्ते थोड़े से सिपाही बनवा दूं और तुम मेरे लिए थोड़ासा सोना बनवा दो।
तारा-हां, ठीक है, चलिए।
दोनों भाई सुमंत के पास पहुंचे।
विजय-भाई सुमंत, मेरी सेना में कुछ कमी है, कुछ सिपाही और बना दो।
सुमंत-नहीं, अब मैं और सिपाही नहीं बनाता।
विजय-पर तुमने वचन जो दिया था, नहीं तो मैं आता ही क्यों? कारण क्या है? क्यों नहीं बनाते?
सुमंत-कारण यह कि तुम्हारे सिपाहियों ने एक मनुष्य को मार डाला। कल जब मैं अपना खेत जोत रहा था, तो पास से एक अरथी देखी। मैंने पूछा, कौन मर गया? एक स्त्री ने कहा कि विजय के सिपाहियों ने युद्ध में मेरे पति को मार डाला। मैं तो आज तक केवल यह समझता था कि सिपाही बैंड बजाया करते हैं, परन्तु वे तो मनुष्य की जान मारने लगे। ऐसे सिपाही बनाने से तो संसार का नाश हो जाएगा।
तारा-अच्छा, यदि सिपाही नहीं बनाते, तो मेरे लिए सोना तो थोड़ासा और बना दो। तुमने वचन दिया था कि कमी हो जाने पर फिर बना दूंगा।
सुमंत-हां, वचन तो दिया था, पर मैं अब सोना भी न बनाऊंगा।
तारा-क्यों?
सुमंत-इसलिए कि तुम्हारे सोने ने बसंत की लड़की से उसकी गाय छीन ली।
तारा-यह कैसे?
सुमंत-बसंत की पुत्री के पास एक गाय थी। बालक उसका दूध पीते थे। कल वे बालक मेरे पास दूध मांगने आए। मैंने पूछा कि तुम्हारी गाय कहां गई, तो कहने लगे कि तारा का एक सेवक आकर तीन टुकड़े सोने के देकर हमारी गाय ले गया। मैं तो यह जानता था कि सोना, बनवाबनवाकर तुम बालकों को बहलाया करोगे, परंतु तुमने तो उनकी गाय ही छीन ली। बस, सोना अब नहीं बन सकता।
दोनों भाई निराश होकर लौट पड़े। राह में यह समझौता हुआ कि विजय तारा को कुछ सिपाही दे दे और तारा विजय को कुछ सोना। कुछ दिन बाद धन के बल से तारा ने भी एक राज्य मोल ले लिया और दोनों भाई राजा बनकर आनंद करने लगे।

8
सुमंत गूंगी बहन के सहित खेती का काम करते हुए अपने मातापिता की सेवा करने लगा। एक दिन उसकी कुतिया बीमार हो गई, उसने तत्काल पहले भूत की दी हुई बूटी उसे खिला दी। वह निरोग होकर खेलनेकूदने लगी। यह हाल देखकर मातापिता ने इसका ब्यौरा पूछा। सुमंत ने कहा कि मुझे एक भूत ने दो बूटियां दी थीं। वह सब परकार के रोगों को दूर कर सकती हैं। उनमें से एक बूटी मैंने कुतिया को खिला दी।
उसी समय दैवगति से वहां के राजा की कन्या बीमार हो गई। राजा ने यह डोंडी पिटवायी थी कि जो पुरुष मेरी कन्या को अच्छा कर देगा, उसके साथ उसका विवाह कर दिया जाएगा। मातापिता ने सुमंत से कहा कि यह तो बड़ा अच्छा अवसर है। तुम्हारे पास एक बूटी बची है। जाकर राजा की कन्या को अच्छा कर दो और उमर भर चैन करो।
सुमंत जाने पर राजी हो गया। बाहर आने पर देखा कि द्वार पर कंगाल बुयि खड़ी है।
बुयि-सुमंत, मैंने सुना है कि तुम रोगियों का रोग दूर कर सकते हो। मैं रोग के हाथों बहुत दिनों से कष्ट भोग रही हूं। पेट को रोटियां मिलती ही नहीं, दवा कहां से करुं? तुम मुझे कोई दवा दे दो तो बड़ा यश होगा।
सुमंत तो दया का भंडार था, बूटी निकालकर तुरंत बुयि को खिला दी। वह चंगी होकर उसे आशीष देती हुई घर को चली गई।
मातापिता यह हाल सुनकर बड़े दुःखी हुए और कहने लगे कि सुमंत, तुम बड़े मूर्ख हो। कहां राजकन्या और कहां यह कंगाल बुयि! भला इस बुयि को चंगा करने से तुम्हें क्या मिला?
सुमंत-मुझे राजकन्या के रोग दूर करने की भी चिन्ता है। वहां भी जाता हूं।
माता-बूटी तो है ही नहीं, जाकर क्या करोगे?
सुमंत-कुछ चिन्ता नहीं, देखो तो सही क्या होता है।
समदर्शी पुरुष देवरूप होता है। सुमंत के राजमहल पर पहुंचते ही राजकन्या निरोग हो गईं। राजा ने अति परसन्न होकर उसका विवाह सुमंत के साथ कर दिया।
इसके कुछ काल पीछे राजा का देहान्त हो गया। पुत्र न होने के कारण वहां का राज सुमंत को मिल गया।
अब तीनों भाई राजपदवी पर पहुंच गए।

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